विश्व पर्यावरण दिवस पर कुछ दोहे


सूख रही है नदी अब, चिंता का है प्रश्न।

लेकिन अपने रहनुमा, मना रहे है जश्न।।


अब चहुँदिशि पतझर हँसे, रोता आज बसंत।

भारत में होने लगा, हरियाली का अंत।।


व्याप्त प्रदूषण हृदय में, नहीं रहा अनुराग।

निर्दयता से कट गया, हरा भरा था बाग़।।


धीरे धीरे बोलिए, था जीवन का मन्त्र।

कान फोड़ने अब लगा, ध्वनि विस्तारक यन्त्र।।


करो प्रकृति की साधना, पेड़ काटना पाप ।

वरना “वर्मा” करेगी, प्रकृति न तुमको माफ़।।


डा0 वी0 के0 वर्मा,

आयुष चिकित्साधिकारी, 

जिला चिकित्सालय-बस्ती