तुम किस मिट्टी के बने हुए हो,
कितनी उर्जा से भरे हुए हो।
तुम बाँट रहे हो लौ अपनी,
पुनि पुनि जग को सींच रहे हो।
आलोकित करके मेरे पथ को,
जीवन के जिमि मीत रहे हो।
तुम धरती पर भगवत स्वरूप,
इस जीवन के तुम दीठि रहे हो।
शत शत नमन तुम्हें मेरा है,
तुम मेरे तो जिमि सीप रहे हो।
उऋण नहीं हो सकता हूँ मैं,
ऐसे अमृत से तुम सींच रहे हो।।
गुरू पूर्णिमा के शुभ अवसर पर समस्त गुरूजनों को नमन
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कृष्ण